हमें हिमाचल प्रदेश के इतिहास के सत्रोत को जानने के लिये यह मालूम होना चाहिये की हिमाचल प्रदेश शब्द का प्रयोग इतिहास में कहाँ कहाँ किया गया है। हमें हिमाचल प्रदेश के स्त्रोतों की जानकारियां प्राचीन काल के सिक्कों, शिलालेखों, साहित्य, भवनों, यात्रा वृतांत और वंशवालिओं के अध्ययन से प्राप्त होते हैं ये स्त्रोत हमारे पास सिमित मात्रा में है जिनका विवरण इस प्रकार से निचे दिया गया है।
हिमाचल प्रदेश का इतिहास के स्त्रोत
- साहित्य - हमें हिमाचल प्रदेश के इतिहास के सत्रोत को जानने के लिये यह मालूम होना चाहिये की हिमाचल प्रदेश शब्द का प्रयोग इतिहास में कहाँ कहाँ किया गया है।
- पुराण - विष्णु पुराण, मार्कंडेय पुराण, स्कन्द पुराण में इस क्षेत्र के निवासियों का पता चलता है।
- रामायण , महाभारत और ऋग्वेद में रहने वाली जनजातियों का विवरण मिलता है।
- पाणिनी की 'अष्टाध्यायी', वृहत्सहिंता, कालिदास के 'रघुवंश', विशाखादत्त के मुद्राराक्षस और कल्हण की राजतरगिणी (कश्मीर का इतिहास बताता है) जो 1149 -50 में रचा गया, में हिमाचल प्रदेश के क्षेत्रों का उल्लेख मिलता है।
- 'तारिक-ए-फिरोजशाही ' और 'तारिक-ए-फरिस्ता' में नगरकोट किले पर फिरोजशाह तुगलक के हमले का प्रमाण मिलता है।
- "तुजक-ए-जहाँगीरी" में जहाँगीर कांगड़ा आक्रमण का उलेल्ख मिलता है।
- "तुजुक-ए-तैमुरी" में तैमूर लंग के शिवालिक पर आक्रमण की जानकारी हमें मिलती है।
- सिक्के - हि. प्र. में सिक्कों की खोज का काम हि. प्र. राज्य संग्रहालय की स्थापना के बाद ही गति पकड़ने लगा। राज्य संग्रहालय शिमला और भूरी सिंह म्यूज़ियम में त्रिगर्त, ओदुम्बर, कुलटा और कुलिंद राजवंशों के सिके रखे गए है। शिमला राज्य संग्रहालय में रखे 12 सिक्के अर्की से प्राप्त हुए है। अपोलोडोटस के 21 सिक्के हमीरपुर के टप्पामेवा गॉव से प्राप्त हुए है। चम्बा के लचोड़ी और सरोल से इण्डो - ग्रीक के कुछ सिक्के मिले है। पहली सदी में राजा विर्यास के द्वारा कुल्लू का सबसे पुराना सिक्का चलाया गया था।
- शिलालेख / ताम्र-पत्र - कांगड़ा के पथयार और कनिहारा के अभिलेख, हाटकोटी में सुनपुर की गुफा के अभिलेख, मण्डी के सलोणु के शिलालेख द्वारा हम हिमाचल प्रदेश के प्राचीन समय की सामाजिक-आर्थिक गतिविधियों की जानकारी प्राप्त कर सकते है। भूरी सिंह म्युसियम चम्बा में चम्बा से प्राप्त 36 अभिलिखों को रखा गया है जो कि शारदा और टांकरी लिपि में लिखे गए है। कुल्लू के शालारु अभिलेखों से गुप्त काल की जानकारी हमें मिलती है। निरमण्ड में सातवीं शताब्दी का महासामंत समुद्रसेन का ताम्र पात्र है। यमुना और टोंस नदी के संगम पर स्थित जौनसार - बावर क्ष्रेत्र में अशोक का शिलालेख है।
- वंशावलियाँ - हिमाचल प्रदेश का इतिहास के स्त्रोत में वंशावलियों की तरफ सर्व प्रथम मूरक्राफ्ट ने काम किया और कांगड़ा के राजओं की वंशावलियाँ खोजने में सहायता की। कैप्टन हारकोर्ट ने कुल्लू की वंशावली प्राप्त की। बाद में कनिघम ने कांगड़ा, चम्बा, मण्डी, सुकेत और नूरपुर राजघरानों की वंशावलियों को खोजा।
- भवन - हिमाचल प्रदेश का इतिहास के स्त्रोत में कांगड़ा किला, भरमौर के मंदिर, सिरमौरी ताल के भाग्नावेश, कामरु, नग्गर, ताबो और 'की' के भवनों से हमें प्राचीन हिमाचल के इतिहास की जानकारी हमें मिलती है।
- यात्रा वृतांत - हिमाचल प्रदेश का सबसे पुराना विवरण टॉलमी ने दिया है जिसमे हमें कुलिंदो का वर्णन मिलता है। चीनी यात्री ह्वेनसांग 630-644 AD तक भारत में रहा और वह इस दौरान कुल्लू व त्रिगर्त भी आया। थामस कोरयाट और विलियम फिंच ने जहाँगीर के समय हिमाचल प्रदेश की यात्रा की। फास्टर ने 1783, विलियम मूरक्राफ्ट ने 1920-1822, मेजर आर्चर ने 1829 के यात्रा वृतांतों में हिमाचल प्रदेश के बारे में लिखा है। इसके अलवा अलबरूनी (1030) ने (महमूद गडनवी के साथ) इस क्षेत्र का वर्णन किया है।
हिमाचल प्रदेश के इतिहास के स्त्रोत की जानकारियाँ हमें प्राचीन काल के सिक्कों, शिलालेखों, साहित्य, भवनों एवं यात्रा वृतांत और वंशावलियों के अध्ययन से ही प्राप्त होती है। हिमाचल प्रदेश का इतहास के स्त्रोत के प्रश्न-उत्तर निचे दिए गए हैं।
- हिमाचल प्रदेश के पठियार और कनिहारा में किस प्रकार के प्राचीन शिलालेख पाए गए हैं? – पत्थर शिलालेख
- औदुंबरों के सिक्कों पर किसके चित्र अंकित मिले हैं?- त्रिशूल और बैल के
- किस स्थान पर ऐसी मूर्तियां चटनों पर अंकित है की जिससे सिद्ध होता है कि आदिवासी कोल जाती के लोग हिमाचल प्रदेश में बस गए थे? – कुमायूं के चंदेश्वर, सोमेश्वर और छतीस की चटनों से।
- ताबो गाँव से वर्षों पुरानी ‘मम्मी’ किस वर्ष प्राप्त हुई? – 1967 में
- पत्थर के हथियार किस वर्ष खोजे गए? – 1955 में बी. बी. लाल और जी. सी. महापात्रा द्वारा (कांगड़ा मैं)
- हिमाचल प्रदेश में मानव के आरंभिक पहचान योग्य अवशेष कब पाए गए? – 1955 ई. में।
- कुल्लू के राजाओं की वंशावली में बदलाव 1869-71 के दौरान किसने किए? – कैप्टन हरकोर्ट
- किसने कांगड़ा, नूरपुर, मंडी, सुकेत, चम्बा और राजौरी के राजाओं की वंशवली प्रकाशित की? – एलेक्ज़ेंडर कनिंघम
- पठियार और कनिहारा इंस्पिरेशन में किसने पुनः बदलाव किए? – स्टेन कोनो
- पहाड़ी राज्यों की वंशावली की तरफ सबसे ध्यान आकर्षित करने वाले विद्वान थे? – विलियम मूरक्राफ्ट
इस ब्लॉग के लेखक पवन पूनल जी है। इनके facebook id का लिंक यहाँ दिया गया है।