हिमाचल प्रदेश का प्राचीन इतिहास । Ancient History of Himachal Pradesh

हिमाचल प्रदेश का इतिहास बहुत पुराना है। हिमाचल के अस्तित्व का पता हमें हमारे प्राचीन ग्रंथों से देखने को मिलता है। जिसमें विष्णु पुराण, मार्कंडेय पुराण, और स्कन्द पुराण में हिमाचल प्रदेश का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद में भी  हिमालय में निवास करने वाली जनजातियों का विवरण देखने को मिलता है।



    हिमाचल प्रदेश के प्रमुख स्त्रोत कौन-कौन से हैं?


    हिमाचल प्रदेश के प्राचीन इतिहास । Ancient History of Himachal Pradesh


    हमें हिमाचल प्रदेश के प्राचीन इतिहास के स्रोतों का वर्णन हिमाचल प्रदेश के प्रत्येक भागों से प्राप्त सिक्कों, शिलालेखों, और हिमाचल में प्राचीन समय में आए लेखकों के द्वारा लिखी हुई पुस्तकों से इस क्षेत्र का पता चलता है।
    हमें त्रिगर्त, औदुम्बर , कुल्लूटा और कुलिंद राजवंशों द्वारा चलाए गए सिक्के हिमाचल प्रदेश में मिले हैं। जिससे यह सिद्ध होता है कि इन राजवंशों का यहां पर शासन  था।
    हमें हिमाचल प्रदेश में बहुत से शिलालेख भी प्राप्त हुए हैं जिनकी संख्या 36 है जो कि शारदा और टांकरी लिपि में लिखे गए हैं।
    हिमाचल में हमें बहुत सी वंशावलियों के बारे में पता चलता है जिसमें सर्वप्रथम मूरक्राफ्ट ने कांगड़ा की, हारकोर्ट ने कुल्लू की वंशावलियों को खोजा। बाद में कनिंघम ने भी कांगड़ा, मंडी, चंबा, सुकेत और नूरपुर राजघरानों की  वंशावली खोजी। हिमाचल प्रदेश के इतिहास के स्रोतों के बारे में अगर आप सब अधिक पढ़ना चाहते हैं तो इस लिंक पर क्लिक करें। हिमाचल प्रदेश का इतिहास के स्त्रोत 


    हिमाचल प्रदेश की जातियां ?

    हिमाचल प्रदेश के प्राचीन इतिहास को जानने के लिए हिमाचल में बसी प्राचीन जातियों से हमें बहुत ज्यादा सहायता मिलती है। प्राचीन समय में हमें मुख्यतः हिमाचल में 4 जातियों के निवास का वर्णन मिलता है जिसमें, कोल जाति, (जिन्हें हिमाचल के मूलनिवासी भी कहा जाता है) किरात, नाग, खश जातियां सम्मिलित है। जिसका वर्णन इस प्रकार से है। 

    कोल  जाति - कोल जाति के लोगों को हिमाचल प्रदेश के मूल निवासी कहा जाता है। क्योंकि इस जाति के लोग ही यहां सर्वप्रथम बसे थे। बाकी सारी जातियां इन के बाद हिमाचल में आई थी। वर्तमान समय में भी हिमाचल प्रदेश में कोल जाति के लोग बसे हुए हैं जिन्हें वर्तमान समय में हम कोली, हाली, डुम, चनाल, बाड़ी आदि जातियों से जाना जाता है।

    किरात  जाति -  कोल जाति के बाद हिमाचल में निवास करने वाली दूसरी जाति किरात जिन्हें (मंगोल के नाम से भी जाना जाता है) थी। महाभारत में भी किरातों का हिमाचल में बसने का प्रमाण हमें देखने को मिलता है।

    नाग जाति -  हिमाचल प्रदेश में निवास करने वाली तीसरी जाति नाग जाति थी। ऐसा कहा जाता है कि नाग जाति के लोग हिमाचल के हर भाग में पाए जाते थे। हड़प्पा सभ्यता के दौरान में भी नाग जाति से संबंधित तथ्य हमें मिले हैं। जिसका प्रमाण हड़प्पा सभ्यता के मोहरों में छापे नाग देवता के चित्रण से होता है।

    खश जाति - खश जाति के लोग हिमाचल में मध्य एशिया से चलते हुए कश्मीर से होकर हिमालय में पहुंचे और पूरे हिमालय में फैल गए। खशों का नाग जाति पर विजय के रूप में भुण्डा उत्सव मनाया जाता है। खशों ने प्राचीन समय में बहुपति प्रथा को अपनाया था। जिसके फलस्वरूप पांडवों ने भी बहुपति प्रथा को खशों से अपनाया। 


    हिमाचल के प्राचीन निवासी कौन थे? 

    हिमाचल प्रदेश के मूल निवासी कोल जाति के लोगों को कहा जाता है। यह यहां बसने वाली सर्वप्रथम जाती थी। वर्तमान समय में भी इस जाति के लोग हिमाचल प्रदेश में निवास करते हैं जिसमें कोली, हाली, डुम, चनाल, बाडी आदि जाति के लोग आते हैं। इसके बाद यहां आने वाली दूसरी जाति किरात जाती थी जिन्हें खशों ने पहाड़ी तलहटी से ऊंचे पर्वतों की ओर भगाया था इसके बाद यहां नाग जाति के निवास के प्रमाण हमें देखने को मिलते हैं। तक्षक नाग ने हिमालय में नाग राज्य स्थापित किया था। 



    हिमाचल प्रदेश के प्राचीन जनपद?

    हिमाचल प्रदेश का प्राचीन इतिहास को जानने व समझने में प्राचीन जनपद हमें बहुत सहायता करते हैं। महाभारत के समय हिमाचल प्रदेश 4 जनपदों में विभाजित था जिसमें हमें त्रिगत, औदुम्बर, कूलिंग और कुल्लुत का विवरण देखने को मिलता है। 

    औदुम्बर  जनपद -  इस क्षेत्र में औदुम्बर वृक्ष अधिक होने के कारण इसका नाम और औदुम्बर जनपद पड़ा। महाभारत के अनुसार औदुम्बर विश्वामित्र के वंशज माने जाते हैं। जो कि कौशिक गोत्र से संबंधित थे। हमें औदुम्बर राज्य के सिक्के भी प्राप्त हुए हैं जो उनके यहां होने की पुष्टि करते हैं। यह सिक्के हमें मुख्यतः  कांगड़ा के पठानकोट, ज्वालामुखी, गुरदासपुर और होशियार के क्षेत्रों से प्राप्त हुए हैं। 

    त्रिगर्त जनपद -  यह क्षेत्र त्रिगर्त, रावी, व्यास और सतलुज नदियों के बीच में स्थित था। त्रिगर्त जनपद की स्थापना भूमि चंद्र द्वारा की गई थी। इसने कौरवों की ओर से युद्ध लड़ा था। त्रिगर्त जनपद का उल्लेख हमें बहुत सी पुस्तकों में भी देखने को मिलता है जिसमें मुख्यतः  पाणिनि की अष्टाध्याई, कल्हण की राजतरंगिणी, विष्णु पुराण, बृहद संहिता तथा महाभारत का द्रोण पर्व है। 

    कुल्लुत जनपद - कुल्लुत रियासत की स्थापना “प्रयाग” इलाहाबाद से आए विहंग मणिपाल ने की थी। कुल्लूत राज्य व्यास नदी के ऊपर वाला भू-भाग था। जिसकी जानकारी हमें रामायण, महाभारत, बृहद संहिता, मार्कंडेय पुराण, मुद्राराक्षस और मत्स्य पुराण में देखने को मिलती है। 

    कुलिंद जनपद - इस क्षेत्र में बहने वाली मुख्य नदी यमुना नदी है। जिसे प्राचीन समय में “कालिंदी” कहा जाता था और इससे लगते आसपास के क्षेत्रों को कुलिंद कहा जाता था। इसके साथ ही साथ इस क्षेत्र में कुलिंद वृक्ष की बहुलता के कारण भी इस जनपद का नाम कुलिंद पड़ा। यह क्षेत्र व्यास, सतलुज और यमुना के बीच में स्थित था। 


    मौर्य काल के समय हिमाचल प्रदेश की स्थिति?

    हिमाचल प्रदेश में मौर्य काल के समय मुख्यतः तीन शासकों का बोलबाला था जिसमें सिकंदर चंद्रगुप्त मौर्य और राजा अशोक थे।
    326 ईसवी पूर्व जब सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया था तब हुए ब्यास नदी तक पहुंच गए थे पर उसके सेनापति “कोइनोस” ने ब्यास नदी को पार करने से इंकार कर दिया और सारी सेना पीछे हट गई। जिस की निशानी के तौर पर सिकंदर ने व्यास नदी के किनारे 12 रूपों का निर्माण करवाया। चंद्रगुप्त मौर्य ने किरात वह खशों को अपनी सेना में भर्ती करवाया। चंद्रगुप्त मौर्य ने नंद वंश का अंत कर के सिंहासन पर बैठा और मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
    राजा अशोक का हिमाचल में बौद्ध धर्म का प्रचार करने में बहुत योगदान रहा। उन्होंने मझिम्म और उसके साथ चार बौद्ध भिक्षुओं को हिमालय में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए भेजा था। जिसके फलस्वरूप कुल्लू के “कलथ” और कांगड़ा के “चैंतडू” में अशोक द्वारा निर्मित बौद्ध स्तूप का निर्माण करवाया गया। 


    गुप्त काल के समय हिमाचल प्रदेश की स्थिति?

    गुप्त वंश के प्रसिद्ध शासक समुद्रगुप्त ने हिमाचल के ज्यादातर जनपदों पर अपना अधिपत्य कर लिया था जिसमें त्रिगत, औदुम्बर , कुल्लुत, भद्र और कार्तिकपुर जनपदों पर समुद्रगुप्त की विजय का उल्लेख हमें देखने को मिलता है। समुद्रगुप्त को भारत का “नेपोलियन” भी कहा जाता है। गुप्त काल के समय पर्वतीय क्षेत्रों में हिंदू धर्म का प्रचार बहुत बढ़ गया था जिसके परिणाम स्वरूप गुप्त काल के समय हिमाचल में बहुत सारे हिंदू मंदिरों का निर्माण हुआ। 



    FAQ - 


    हिमाचल प्रदेश का नाम किसने रखा ?

    1948 में सोलन दरबार में आचार्य दिवाकर दत।

    हिमाचल प्रदेश की स्थापना कब हुई थी ?

    15 अप्रैल 1948 को 30 छोटी - बड़ी रियासतों को मिलाकर एक पहाड़ी प्रांत "हिमाचल प्रदेश " की विधिवत स्थापना हुई थी।

    हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा कब मिला था ?

    25 जनवरी 1971 को।

    15 अप्रैल 1948 को कितनी रियासतों को मिलाकर हिमाचल प्रदेश का गठन हुआ था ?

    26 हिमाचल की और 4 पंजाब की पहाड़ी रियासतों कुल 30 रियासतों को मिलाकर हिमाचल प्रदेश की स्थापना हुई थी।

    15 अप्रैल 1948 को हिमाचल में क्या हुआ ?

    30 छोटी - बड़ी पहाड़ी रियासतों को मिलाकर हिमाचल प्रदेश एक मुख्य आयुक्त प्रांत के रूप में उभरा। यह दिन हिमाचल दिवस के रूप में मनाया जाता है। 

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