पैगोडा शैली हिमाचल प्रदेश में मंदिर निर्माण की एक शैली है। यह पहाड़ी क्षेत्रों नेपाल भूटान, सिक्किम में भी प्रसिद्ध है। इस शैली से बनाए गए मंदिर वर्गाकार अथवा आयताकार होते हैं। मंदिर की दीवारें देवदार की मोटी मोटी लकड़ी की कड़ियों से बनाई जाती है। इन कड़ियों के मध्य कार्य तथा पत्थरों की चिनाई की जाती है। इस तरह की बनाई गई दीवारें बहुत मजबूत होती है। ऐसे मंदिरों की छतों को स्लेटों अथवा लकड़ी से ढका जाता है। प्रत्येक मंजिल का फर्श मोटे-मोटे तत्वों द्वारा बनाया जाता है। इस प्रकार के मंदिर में कई छतें होती है। कई मंदिरों में सात तक मंजिलें हैं। यह छतें नीचे से ऊपर की ओर घटती जाती है। अर्थात नीचे वाली छत एक के ऊपर दूसरी, दूसरी के ऊपर तीसरी, तीसरी के ऊपर चौथी वर्गाकार होती है। कई मंदिरों में सबसे ऊपर वाली छत शंकु की तरह गोल होती है।
पैगोड़ा शैली |
पगोड़ा शैली के मंदिर में सबसे नीचे वाला कक्ष उठने बैठने के लिए प्रयोग किया जाता है। मंदिर के बीच का मुख्य भाग छतरी की तरह गोल होता है। यहां प्रधान देवता की मूर्ति स्थापित होती है। इस भाग के चारों ओर बालकनी होती है। इन मंदिरों में लकड़ी के ऊपर की गई चित्रकारी उच्च स्तर की पाई जाती है। पैगोडा शैली के मंदिर प्रदेश के 2 जिलों मंडी तथा कुल्लू में अधिक पाए जाते हैं।
पैगोडा शैली के मंदिर जिला मंडी में पराशर देव मंदिर, ब्रह्मा मंदिर ढीरी, कामक्ष तथा गौरी शंकर मंदिर करसोग, बौद्ध मंदिर रिवालसर, जिला कुल्लू में हिडिंबा देवी मंदिर मनाली, त्रिपुर सुंदरी मंदिर नगर, त्रियुगी नारायण मंदिर दियार, आदि ब्रह्मा मंदिर खोखण, मनु ऋषि मंदिर शैंशर में देखे जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त जिला शिमला के भीमा काली मंदिर सराहन, शिव मंदिर बलग, मंडी जिला का मगरू महादेव मंदिर छतरी और किन्नौर जिला के शिव महेश्वर मंदिर सुंगरा में भी पकौड़ा मिश्रित पहाड़ी शैली के मंदिर है।
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